Punjab में पराली पर कड़ा प्रहार: FIRs की बौछार

 पंजाब में इस साल पराली (stubble) जलाने पर कड़ी निगरानी और कार्रवाई का दौर शुरू हो गया है। पिछले कुछ दिनों में प्रशासन ने कई मामलों में एफआईआर दर्ज कीं और किसानों को चेतावनी दी है कि पराली जलाने के चलते उन्हें कई सरकारी लाभों से वंचित भी किया जा सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं क्या हुआ, क्यों हो रहा है, और इसका असर किस तरह का दिख रहा है।


हालात क्या हैं — ताज़ा आँकड़े और रुझान

पिछले दो-तीन हफ्तों में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या घटने का संकेत मिला है। इस सीज़न में अब तक दर्ज कुल घटनाओं की संख्या इस वर्ष पिछले सालों की तुलना में काफी कम आ रही है — उदाहरण के लिए 17 अक्तूबर 2025 तक कुल लगभग 208 घटनाएँ दर्ज हुईं, जो 2024 और 2023 के मुक़ाबले कम हैं। फिर भी कुछ जिलों — खासकर अमृतसर और तरनतारन — में मामलों की संख्या अधिक रही है। हाल के 48 घंटों में प्रदेश भर में दर्ज किए गए FIRs की संख्या भी उल्लेखनीय रही — प्रशासन सक्रिय है और तेज़ी से कार्रवाई कर रहा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल पराली जलाने के मामलों में गिरावट तो आई है, लेकिन पूरी तरह से रुकावट नहीं हुई है। https://www.indiatoday.in/india/story/sharp-fall-in-stubble-burning-cases-in-punjab-but-challenge-remains-after-diwali-2804918-2025-10-17 के अनुसार, पंजाब में 17 अक्टूबर 2025 तक करीब 200 से ज़्यादा घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं।

आइटम ताज़ा आँकड़ा / नोट
कुल रिपोर्टेड घटनाएँ (सीज़न तक) ~208 (17 Oct 2025 तक)। स्थिति घट रही है पर पूरी तरह नहीं रुकी।
हाल के 48 घंटे में दर्ज FIRs 34 (कई जिलों में शामिल)।
सबसे ज़्यादा प्रभावित जिले अमृतसर, तरनतारन आदि।

पराली जलाने के पीछे कारण (सरल भाषा में)

लोग अक्सर पूछते हैं — किसान पराली क्यों जलाते हैं? इसका एकदम सरल कारण है समय और लागत।

  • धान की कटाई के बाद खेत तुरंत साफ़ करके गेहूं बोना होता है — समय कम और काम ज़्यादा।

  • पराली हटाने के पारंपरिक तरीके महंगे हैं या समय लेते हैं। किसान कई बार सीज़नल दबाव में आकर आग लगा देते हैं।

  • कुछ जगहों पर बाढ़ या फसल नुकसान के बाद खेती के तरीकों में बदलाव से भी असर होता है। किसानों का कहना है कि विकल्प सस्ती उपलब्धता पर निर्भर करते हैं।

सरकार और प्रशासन की अब तक की कार्रवाई — क्या-क्या किया जा रहा है

हालिया कार्रवाई में कई गंभीर कदम उठाए गए हैं: FIR दर्ज करना, जुर्माना लगाना, रिकॉर्ड में “रेड एंट्री” (land record में नकारात्मक प्रविष्टि), और चेतावनी कि अगर किसान पराली जलाते पाए गए तो उनके कुछ सरकारी लाभ बंद किए जा सकते हैं।
इसके साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन के बीच समन्वय बढ़ाया गया है ताकि हर क्षेत्र में निगरानी हो सके।

सरकार ने मशीनरी सब्सिडी का पैकेज पहले ही जारी किया था — केंद्रीय स्तर पर भी क्रॉप रेजिड्यू मैनेजमेंट मशीनों (CRM machines) के लिए फ़ंड उपलब्ध कराया गया है ताकि किसानों को विकल्प दिए जा सकें। साथ ही कुछ प्रोत्साहन उद्योगों को भी दिए जा रहे हैं जो पराली को ईंधन के रूप में उपयोग कर सकें (जैसे ईंट भट्टे, थर्मल प्लांट आदि)।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर — छोटा पर सधा हुआ विश्लेषण

पराली जलने से निकलने वाला धुआँ सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता को बहुत प्रभावित करता है। यह न सिर्फ अस्थमा और सांस की बीमारियों को बढ़ाता है बल्कि दृश्यता और ट्रैफ़िक, कृषि व अन्य क्षेत्रों पर भी असर डालता है।
कुछ दिनों में stubble burning का योगदान PM2.5 के स्तर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी कर देता है। इसलिए न केवल पंजाब बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गंभीरता को माना जाता है।

किसानों की दिक्कतें और उनका नजरिया

कई किसान कहते हैं कि उन्हें पर्याप्त सब्सिडी या सुविधाएँ नहीं मिल रहीं, या मशीनों की संख्या और उनका संचालन सीमित है।
कुछ इलाकों में बाढ़ और फसल नोकसान के बाद किसानों ने बताया कि वे मजबूर होकर पराली जलाते हैं क्योंकि वक्त कम होता है या मजदूरी महँगी है।
इसलिए सज़ाओं के साथ-साथ उनकी समस्याओं के व्यावहारिक समाधान भी आवश्यक हैं।

व्यवहारिक समाधान — क्या किया जा सकता है

  1. CRM मशीनों की उपलब्धता और संचालन: सरकारी सब्सिडी से ज्यादा मशीनें खरीदी जाएँ और ऑपरेटिंग पॉइंट पर सस्ती दरों पर उपलब्ध कराई जाएँ।

  2. इन-सीटू (In-situ) तकनीकें: Happy Seeder जैसे उपकरण जो पराली को काटकर जमीन में मिलाते हैं — इन्हें स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण और सब्सिडी के साथ बढ़ावा दिया जाए।

  3. Ex-situ उपयोग: ब्रिक किल्न, पावर प्लांट आदि में कृषि अवशेष का उपयोग करवाने के लिए इंडस्ट्री-फार्मर पैकेज बनाए जाएँ।

  4. निगरानी व दंड का संतुलन: सख्ती ज़रूरी है, पर उससे पहले किसानों को विकल्प व मार्गदर्शन दिए गए होने चाहिए।

  5. स्थानीय जागरूकता: पंचायतों, स्कूलों और धार्मिक संस्थाओं के ज़रिये जागरूकता और फील्ड-लेवल मदद उपलब्ध कराना।

छोटे-बड़े कदम — क्या उम्मीद की जाए

हालिया आँकड़े बताते हैं कि इस सीज़न में पराली जलाने की घटनाएँ पिछले वर्षों की तुलना में कम दर्ज की जा रही हैं — यह एक सकारात्मक संकेत है, पर चुनौती अब भी बरकरार है, खासकर त्योहारों और दिवाली के बाद।
पंजाब की तैयारी, किसान समर्थन और उद्योग सहयोग — तीनों का तालमेल बनना ज़रूरी है ताकि स्थायी कमी लाई जा सके।

निष्कर्ष 

पराली जलाना सिर्फ किसी जिले की समस्या नहीं , यह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है।
पंजाब में चल रही कड़ी कार्रवाई नीतिगत संकल्प दिखाती है, लेकिन असली समाधान तब ही आएगा जब किसानों को व्यवहारिक विकल्प, मशीनरी और आर्थिक मदद समय पर मिले।
सज़ा और निगरानी के साथ-साथ मदद और जागरूकता भी उतनी ही ज़रूरी है — तभी यह मुद्दा टिकाऊ तरीके से हल होगा।


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