₹40,000 करोड़ का अलार्म: बाढ़ पीड़ित किसानों ने दी चेतावनी

 पंजाब में 2025 की मॉनसून बाढ़ ने किसानों की ज़मीन, फसलों और उम्मीदों को तहस-नहस कर दिया है। अब किसान केंद्र और राज्य सरकार से ₹40,000 करोड़ मुआवज़े की मांग कर रहे हैं — ताकि वे अपना जीवन फिर से खड़ा कर सकें। यह सिर्फ एक आर्थिक मांग नहीं, यह न्याय और ज़िम्मेदारी की पुकार है।

https://timesofindia.indiatimes.com/city/chandigarh/punjab-farmers-demand-rs-40k-cr-flood-payout/articleshow/124168799.cms

बाढ़ की चोट: नुकसान की तस्वीर

आंकड़े बताते हैं कि पंजाब की 1,400 से ज़्यादा गांव बाढ़ से प्रभावित हुए और लगभग 2.5 लाख एकड़ ज़मीन जलमग्न हुई। फसलों का भयंकर नुकसान हुआ, विशेषकर बासमती चावल, जो राज्य की exports की रीढ़ है। एक किसान ने Al Jazeera को बताया कि उसकी तीन एकड़ की बासमती पूरी तरह पानी में डूब गई, और वह फिर से शुरुआत करने की स्थिति में नहीं है।


सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की — ₹20,000 प्रति एकड़ मुआवज़ा, साथ में ₹4 लाख का ex gratia जीवन हानि पर, और किसानों को उनके खेतों से कटे रेत को निकालकर बेचने की अनुमति दी गई (नीति: “Jisda Khet, Usdi Ret”)।
लेकिन किसानों का कहना है कि यह पैकेज उनकी मांगों का हिस्सा मात्र है, न कि समाधान।

मांगों की तस्वीर: क्या माँगा जा रहा है और क्यों?

किसान संघों की मांगों पर नजर डालें, तो वे न केवल फसल हानि का मुआवज़ा माँग रहे हैं, बल्कि जीवन जीने की बुनियादी ज़रूरतों का हिसाब भी मांग रहे हैं

मांग विवरण / पृष्ठभूमि
फसल मुआवज़ा ₹70,000 प्रति एकड़ — (किसान संघों द्वारा प्रस्तावित)
भूमिहीन और छोटे किसान ₹1,00,000 प्रति परिवार — ताकि वे रोटी, बीज और जीवनयापन कर सकें
मृतकों के आश्रित ₹25 लाख प्रति परिवार — जिन परिवारों ने अपना सदस्य खोया है
पशुधन नुकसान गाय/भैंस पर लगभग ₹37,500 तक
घर और संरचनाएँ घर क्षति, बोरवेल, पंप और अन्य कृषि-साधन सहित राहत
ऋण माफी / त्वरित बीमा क्लेम सरकार से यह अपेक्षा कि किसानों को कर्ज और बीमा प्रक्रिया में राहत मिले

सरकारी घोषणाएँ और उनका असली असर

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दावा किया कि यह पैकेज “सबसे ज़्यादा” है और जल्द वितरित होगा। सरकार ने यह भी कहा कि लोन किस्तों में 6 महीने की छूट दी जाएगी लेकिन  खेतों में बैठे किसान कहते हैं: “₹20,000 प्रति एकड़ की घोषणा व्यावहारिक नहीं है — हमारा नुकसान इससे अधिक गुना है।”

https://indianexpress.com/article/cities/chandigarh/punjab-flood-compensation-farmers-aid-10238014

किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नहीं सुना गया, तो बड़े आंदोलन हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुआवज़े की प्रक्रिया अपारदर्शी होती है, नुकसान का सही आकलन नहीं होता और वितरण में हमेशा देरी होती है।

कठिन चुनौतियाँ

बाढ़ के मुआवज़े का मामला सिर्फ धन बाँटने का नहीं है — यह मासूम किसानों की उम्मीदों, भरोसों और संघर्षों की कहानी है।
पहली बड़ी चुनौती: पारदर्शी गिरीदावरी — नुकसान का सही आंकलन होना चाहिए, न कि हरियाली दिखने वाले ज़मीनों का आंकड़ा।
दूसरी: वितरण प्रणाली की देरी और भ्रष्टाचार — मुआवज़े की राशि पहुंचने में महीनों लग जाते हैं।
तीसरी: पूरी क्षति को मान्यता देना — सिर्फ फसल नहीं, पंप, बोरवेल, घर, सब्जियाँ, पैकेजिंग मशीन—all को शामिल करना चाहिए।
चौथी: राजनीतिक इच्छाशक्ति — यदि सरकारें इस मुद्दे को सिर्फ चुनाव के समय छूने वाली एजेंडा समझें, तो किसानों का नुकसान बढ़ेगा

पीड़ा, उम्मीद और संघर्ष

गुरविंदर सिंह, गृडासपुर का एक किसान, ने बताया कि उसकी तीन एकड़ बासमती डूब गई। “मैंने बहुत ऋण ले रखा था,” उन्होंने कहा, “इस फसल पर ही मैं उसे चुकाने वाला था। अब मैं कहां जाऊँ?”

हरप्रीत कौर, जो परिवार सहित बाढ़ में बाहर निकली, कहती हैं: “मेरा घर ढह गया, मशीनें बर्बाद हो गईं। सरकार कहती है मुआवज़ा आएगा, लेकिन कब? राशन देने से जीवन नहीं चलता।”

यह कहानी केवल दो नाम नहीं — यह उन लाखों परिवारों की आवाज़ है जिन्हें अभी भी सुरक्षा और न्याय चाहिए।

👉 "इससे जुड़ी खबर आप हमारे दूसरे पोस्ट में पढ़ सकते हैं —https://www.sabsaytez.com/2025/09/punjab-flood-2025-red-alert.html

आगे की राह: सरकार और किसान के बीच पुल

  • स्वतंत्र मुआवज़ा समीक्षा पैनल — जिसमें किसान प्रतिनिधि, कृषि वैज्ञानिक और न्यायाधीश हों।

  • अग्रिम राहत राशि — पात्र किसानों को तत्काल धन में अग्रिम भुगतान।

  • ऋण माफी + त्वरित बीमा क्लेम निपटान — जिससे किसानों को वित्तीय दबाव से मुक्ति मिले।

  • पुनर्वास और संसाधन पुनर्स्थापना — मिट्टी सुधार, सिंचाई व्यवस्था पुनर्स्थापना।

  • दीर्घकालीन उपाय — बांध प्रबंधन, नदियों की सफाई, वनों की रक्षा ताकि भविष्य में बाढ़ जोखिम कम हो।


₹40,000 करोड़ की मांग सरकारों के लिए “राजनीतिक सिरदर्द” ज़रूर है, लेकिन किसानों के लिए यह जीवन और मृत्यु का सवाल है।

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